कबीरधामकवर्धा

डिजिटल इंडिया का सही क्रियान्वयन नही,ग्रामीणों को नही मिला रहा बैंक सखी कांसेप्ट का लाभ*

ग्रामीणों को महतारी वंदन एवं अन्य शासकीय भुगतान जेसे पेंशन इत्यादि के लिए दूर तक सफर करना पड़ रहा है,बैंक सखी बनाने वाली योजना फैल*

कवर्धा। कबीरधाम जिले में डिजिटल इंडिया का सही-सही क्रियान्वन नहीं होने से बैंक सखी के रूप में काम करने वाली प्रशिक्षित ग्रामीण दीदिया इसका लाभ नही उठा पा रही है वही बैंक सखी के माध्यम से ग्रामीण बैंकिंग सुविधा से आम जन भी वंचित हो रहे है ।

 

कबीरधाम जिले में बैक सखी सेंटर का बेहतर संचालन हुआ करता था और राज्य के अन्य जिलों में कबीरधाम को जिले के नाम बडे सम्मान से लिया जाता था, लेकिन डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के प्रति रूझान शासन-प्रशासन का कम होने से इस महत्वकांक्षी योजनाओं पर ताले लगने जैसी स्थिति निर्मित होनी लगी है।

 

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने और आय बढ़ाने लिए डिजिटल इंडिया जैसी महत्वकांक्षी योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित हो रही थी। कबीरधाम जिले में डिजिटल इंडिया के माध्यम से बैकों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों में डिजिपेय जैसे सुविधाओं से लेनदेन किया जाता था। स्थानीय लीड बैंक द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से बैंकिग सखी के माध्यम से गांवों में प्रशिक्षित दीदियों के माध्यम से सखी बैंक संचालित होती थी। कवर्धा क्षेत्र में बैक सखी एंव अन्य निजी कारेस्पोंडेंस द्वारा 155 केन्द्र चालू तो किए गए थे,लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा इस पर विशेष ध्यान नहीं देने से बैंक सखी के रूप में वर्तमान में केवल 9 केन्द्र तथा निजी केद्र महज 40 आज की स्थिति मे सक्रिय हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों को महतारी वंदन एवं अन्य शासकीय भुगतान जेसे पेंशन इत्यादि के लिए दूर तक सफर करना पड़ रहा है।

बैंक सखी की सुविधा नहीं मिलने से ग्रामीणों को अपने गांव से दूर शहर तक बैंक में आने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

 

डिजिटल इंडिया के तहत छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओ को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए महिलाओं को समूह के साथ जोड़ा गया था। महिला समूह अपने क्षेत्रों में बैंकों से वित्तीय लेन-देन करते हुए ग्रामीणों को अपने स्मार्ट फोन एवं बायो मेट्रिक डीवाइस के सहायता से राशि का भुगतान किया जाता था। कबीरधाम जिले के सभी 461 ग्राम पंचायतों में इस सुविधाओं का विस्तार हो चुका था। प्रत्येक पांच ग्राम पंचायत पर एक बीसी सखी अपनी सेवाएं दी रही थी। राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन के तहत बनाए गए स्व सहायता समूह की महिला सदस्य के रूप में बैंक सखी के रूप में आत्मनिर्भर बन रही थी, लेकिन उनकी आत्मनिर्भरता पर ग्रहण लगते दिखाई दे रहा है।

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Brajesh Gupta

Editor, cgnnews24.com

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