छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार मनाया जा रहा है। प्रदेश से हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली में बैठी सिंगर गरिमा दिवाकर ने हरेली को खास बना दिया। इस त्यौहार का खुमार विदेशियों पर भी चढ़ा दिया, गरिमा के सिखाए सॉन्ग को इजरायली डायरेक्टर मायन इवन गाते नजर आए, झूमते हुए मायन ने गेड़ी नांगर बइला… गीत गाया और हरेली की मस्ती वैसे ही महसूस की जैसे कोई छत्तीसगढ़िया महसूस कर सकता है।
दरअसल रायपुर के रहने वाली सिंगर गरिमा दिवाकर इन दिनों नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली में एक्टिंग की पढ़ाई कर रही हैं। यही उनकी मुलाकात इसराइली डायरेक्टर मायन इवन से हुई। मायन गरिमा को इसराइली गीत संगीत के बारे में कुछ बता रहे थे, तभी गरिमा ने हरेली के बारे में उन्हें बताया।
गरिमा ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि मैंने इजराइली डायरेक्टर से छत्तीसगढ़ के हरेली त्यौहार की जानकारी साझा की। बताया कि कैसे हम यहां हरेली में पूजा पाठ करते हैं, खेती किसानी का काम होता है और हमारे गीत में खेत बैल और हरियाली का जिक्र होता है। यह सुनकर मायन काफी एक्साइटेड थे और उन्होंने कहा मैं जरूर इस गीत को गाऊंगा। वीडियो में वो ताली बजाते हारमोनियम पर धुन देते और गीत गाते दिख रहे हैं।
गरिमा ने बताया कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में अलग-अलग देशों से एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। इजराइली डायरेक्टर मायन को इजरायल के नाटक, संस्कृति, म्यूजिक के बारे में हमें बताने बुलाया गया है। वह हमें इजराइली संगीत भी सिखाते हैं इसी दौरान उन्होंने हमारे साथ छत्तीसगढ़ी गाने पर आनंद लिया।
मुख्यमंत्री बघेल भी हुए इंप्रेस
सोशल मीडिया पर मौजूद इजराइली डायरेक्टर का यह छत्तीसगढ़िया गाना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास पहुंचा तो उन्होंने भी इंस्टाग्राम पर इस गीत को शेयर करते ये पोस्ट की।
मैं इंडिया में स्टार बन चुका हूं
जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर इजरायली डायरेक्टर का गाना शेयर किया तो मायन भी खुश हुए। मायन ने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा कि भारत के राज्य छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार मनाया जाता है गरिमा पारंपरिक गीत गाती हैं, नई दिल्ली में उन्होंने मेरे साथ रिहर्सल की मैंने छत्तीसगढ़ी गाना सीखा और गाया भी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने पेज पर इसे अपलोड भी किया इसलिए आप कह सकते हैं मैं भारतीय नेटवर्क में स्टार हूं।
जानिए हरेली त्योहार को
सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।
परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का आर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।