कवर्धा भारत वर्ष में कलकत्ता के बाद छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और कवर्धा में ही खप्पर निकालने की परंपरा रही है। अब यह परपंरा देशभर में केवल कवर्धा में बची हुई है। कवर्धा में दो सिद्धपीठ मंदिर और एक देवी मंदिर से परम्परानुसार खप्पर निकाला जाता है। भारत वर्ष में देवी मंदिरों से खप्पर निकालने की परंपरा वर्षो पुरानी है। धार्मिक आपदाओं से मुक्ति दिलाने व नगर में विराजमान देवी-देवताओं का रीति रिवाज के अनुरूप मान मनौव्वल कर सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना स्थापित करना है। प्रत्येक नवरात्रि में अष्टमी के मध्य रात्रि ठीक 12 बजे दैविक शक्ति से प्रभावित होते ही समीपस्थ बह रही सकरी नदी के नियत घाट पर स्नान के बाद द्रुतगति से पुनः वापस आकर स्थापित आदिशक्ति देवी की मूर्ति के समक्ष बैठकर उपस्थित पंडों से श्रृंगार करवाया जाता है। स्नान के पूर्व लगभग 10.30 बजे से ही माता की सेवा में लगे पण्डों द्वारा परंपरानुसार 7 काल 182 देवी-देवता और 151 वीर बैतालों की मंत्रोच्चारणों के साथ आमंत्रित कर अग्नि से प्रज्जवलित मिट्टी के पात्र (खप्पर) में विराजमान किया जाता है।
पूर्व में था रौद्ररूप
चण्डी मंदिर के पुजारी तिहारी चंद्रवंशी ने बताया कि का कहना पांच दशक से भी पूर्व जो खप्पर का रूप था वह काफी रौद्ररूप था। दर्शन करना तो बहुत दूर की बात थी, किलकारी की गूंज मात्र से बंद कमरे में लोग दहशत में आ जाते थे। बावजूद इसके धार्मिक भावना से प्रेरित होकर दरवाजों व खिड़कियों की पोल से पल भर के लिए दर्शन लाभ उठाते थे।
आज अष्टमी मध्यरात्रि में निकलेगी खप्पर..
अष्टमी के मध्यरात्रि को नगर के दो सिद्धपीठ देवी मंदिर से परम्परानुसार खप्पर निकलेगा। देवांगन पारा स्थित मां चण्डी मंदिर और मां परमेश्वरी मंदिर मध्यरात्रि 12. बजे मां चण्डी मंदिर से फिर 15 मिनट के अंतराल में माँ परमेश्वरी से खप्पर नगर भ्रमण को निकली जाती है। विभिन्न मागों से गुरुजते हुए मोहल्लों में स्थापित 18 मंदिरों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान किया जाता है।