नकली शंकराचार्य पर आदित्यवाहिनी की आपत्ति के बाद आयोजन समिति ने वापस लिया आमंत्रण, सरकार से कड़े कानून की मांग

कवर्धा। दुर्ग जिले के सुरडुंग-जामुल में आयोजित रुद्र महायज्ञ में स्वामी अधोक्षजानंद तीर्थ को पुरी स्थित श्री गोवर्धन मठ के शंकराचार्य के रूप में आमंत्रित किए जाने के विरोध में आदित्यवाहिनी द्वारा दर्ज कराई गई आपत्ति के बाद आयोजन समिति ने अपना आमंत्रण वापस ले लिया है। इस संबंध में समिति ने लिखित रूप में स्पष्ट किया है कि उन्हें स्वामी अधोक्षजानंद के वास्तविक परिचय की जानकारी नहीं थी। अब उन्होंने उन्हें कार्यक्रम में न आने का अनुरोध किया है, जिसे संबंधित व्यक्ति ने स्वीकार कर लिया है।
इस घटनाक्रम के बाद आदित्यवाहिनी, धर्मसंघ पीठ परिषद तथा आनंदवाहिनी ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मामले पर प्रतिक्रिया दी है। विज्ञप्ति में बताया गया कि अधोक्षजानंद तीर्थ को शंकराचार्य के रूप में प्रचारित किया जाना सनातन परंपरा और न्यायिक मान्यता, दोनों के विपरीत है।
प्रदेश उपाध्यक्ष अवधेश नंदन श्रीवास्तव और जिला अध्यक्ष ने बताया कि भारत के उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों में कई प्रकरणों में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ही श्री गोवर्धन मठ, पुरी पीठ के वैध और परंपरागत शंकराचार्य हैं। वे आदि शंकराचार्य परंपरा में 145वें क्रम के शंकराचार्य हैं, जिनका अभिषेक पूर्वाचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री निरंजन देवतीर्थ जी महाराज द्वारा किया गया था। इस परंपरा की प्रामाणिकता निर्विवाद है और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अभिलेखों में दर्ज है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि स्वामी अधोक्षजानंद तीर्थ द्वारा स्वयं को शंकराचार्य घोषित किया जाना न केवल भ्रामक है, बल्कि धर्म की प्रतिष्ठा के साथ एक गंभीर खिलवाड़ भी है। इस प्रकार की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने हेतु संस्था ने सरकार से कड़ा और स्पष्ट कानून बनाए जाने की मांग की है, जिससे भविष्य में कोई भी व्यक्ति सनातन धर्म के सर्वोच्च धार्मिक पद की मर्यादा को भंग न कर सके। संस्था ने यह भी स्पष्ट किया है कि भले ही अधोक्षजानंद तीर्थ के विरुद्ध अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है, परंतु उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की मांग जारी रहेगी।
