बिलासपुर जिले के रतनपुर में स्थित 1000 साल पुराने आदि शक्ति मां महामाया मंदिर में 1 जनवरी को डेढ़ लाख लोगों ने दर्शन किए। महामाया की ड्योढ़ी पर माथा टेकने सुबह से रात तक जनसैलाब उमड़ा रहा। मंदिर परिसर में तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद लोगों को दर्शन के लिए लंबी कतारें लगानी पड़ीं।
मंदिर ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी अरुण शर्मा और उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने बताया कि श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण के लिए 60 क्विंटल बूंदी का प्रसाद तैयार कराया गया। वहीं दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं के भोजन प्रसाद के लिए भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। मंदिर के पुजारियों ने विशेष अवसरों पर किया जाने वाला मां महामाया का राजसी श्रृंगार किया।
पुलिस के अतिरिक्त जवानों की थी तैनाती
भक्तों को कतारबद्ध कर जल्दी दर्शन कराने के लिए पुलिस के अतिरिक्त 100 से अधिक वॉलंटियर लगाए गए। बता दें कि शक्तिपीठों में शामिल महामाया मंदिर अंचल में प्रसिद्ध है। बिलासपुर-कोरबा मुख्य मार्ग पर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन और गौरवशाली है।
मंदिर 1000 साल पुराना, रतनपुर चर्तुयुगी
पौराणिक ग्रंथ महाभारत और जैमिनी पुराण में रतनपुर को राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। इसे चर्तुयुगी नगरी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि इसका अस्तित्व चारों युगों में विद्यमान रहा है।
ग्यारहवीं सदी का मंदिर
राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नाम के गांव को रतनपुर का नाम देकर अपनी राजधानी बनाया। आदिशक्ति मां महामाया देवी का मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है। महामाया देवी का दिव्य और भव्य मंदिर दर्शनीय है। इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था।
ट्रस्ट की सालाना आय 10 करोड़
मां महामाया मंदिर की देखरेख और संचालन के लिए साल 1984 में ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। मंदिर ट्रस्ट की सालाना आय 10 करोड़ रुपए है। ट्रस्ट की आय का उपयोग नगर विकास, तालाबों के गहरीकरण, स्कूल और मंदिरों के नवीनीकरण व निःशुल्क शिक्षा पर किया जाता है। इस पर प्रति वर्ष एक करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। वर्तमान में लगभग 100 एकड़ जमीन मंदिर ट्रस्ट के पास है।
मंदिर में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए तीन धर्मशालाएं
दर्शनार्थियों की संख्या को देखते हुए उनके ठहरने के लिए मंदिर ट्रस्ट ने 3 बड़ी धर्मशालाएं बनाई हैं। हर साल मंदिर में आए दान के पैसे से ज्योति कलश कक्ष तैयार किया गया। वर्तमान में मंदिर ट्रस्ट के पास 21 ज्योति कलश कक्ष हैं। मां महमाया मंदिर ट्रस्ट के अंतर्गत लखनी देवी मंदिर और आई तुलजा भवानी मंदिर संचालित हैं। लखनी देवी मंदिर के लिए पहाड़ी पर लगभग 239 सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है। यहां भी धर्मशाला और जवारा कक्ष बनाया गया है।
रतनपुर को मंदिर और तालाबों की नगरी कहा जाता है। यहां 113 से अधिक तालाब और जगन्नाथजी का मंदिर भी है।
राजा रत्नदेव के सपने में आई देवी, तब बनाया मंदिर
ऐसी किवदंती है कि 1045 ईस्वी में राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नाम के गांव में शिकार के बाद एक वट वृक्ष पर रात्रि विश्राम किया। जब राजा की आंख खुली, तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा। वे यह देखकर चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया।
राजा ने रतनपुर में 1050 ईस्वी में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया। माना जाता है कि सती की मृत्यु से व्यथित भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए।