सुराजी गांव योजनांतर्गत वर्षभर आदर्श गौठानों में वर्षभर हरा चारा उत्पादन तकनीक पर वन विभाग के सेवारत अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए साईलेज उत्पादन पर प्रशिक्षण का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र कवर्धा में किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य वनक्षेत्रों में वर्षभर हरा चारा उत्पादन तथा पशुओं को संतुलित पोषक आहार उपलब्ध कराना है। छत्तीसगढ़ शासन के महत्वाकांक्षी योजना सुराजी गांव योजना अंतर्गत जिले में स्थापित गौठानों में शासन के निर्देशानुसार पांच एकड़ जमीन में चारागाह विकास किया जाना है। जिससे गौठानों में आने वाले पशुधन के लिए वर्षभर हरे चारे का प्रबंध किया जा सके। इसी तारतम्य में चारा उत्पादन तकनीक पर कृषि विज्ञान केन्द्र, कवर्धा में प्रशिक्षण प्रदाय किया गया है।
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.पी. त्रिपाठी ने प्रशिक्षणार्थियों को साईलेज बनाने विधि बताया। उन्होंने बताया कि हरे चारे को फूल आने से लेकर दूधिया अवस्था तक काट लेना चाहियें। चारे कुट्टी की लम्बाई एक इंच से ज्यादा नही होना चाहिए। हरे चारे (नमी 70-80 प्रतिशत) चारे को काटकर धूप में सुखायें,जिससे नमी 60 प्रतिशत तक हो जाए। चारे में पदार्थ 30 से 40 प्रतिशत तक अवश्य होना चाहिये। ज्यादा सुखे चारे का साइलेज पूरी तरह नही बैधता तथा बीच में हवा रह जाने से फफूंदी लग जाती है और यदि पानी की मात्रा अधिक है तो साइलेज सड़ जायेगा। साइलेज तैयार करने के लिए गड्ढे की लम्बाई, चौड़ाई तथा गहराई पशुओं की उपलब्धता पर निर्भर करती है। सामान्यत एक घनफुट जगह में 15 किलो साइलेज आता है। उदाहरण के तौर पर एक गड्ढा, जिसकी लम्बाई 10 फीट, चौड़ाई 5 फीट व गहराई 6 फीट हो, उसमें 50 क्विंटल साइलेज बनाया जा सकता है। डॉ. (श्रीमति) राजेश्वरी साहू, विषय वस्तु विशेषज्ञ, उद्यानिकी द्वारा अजोला उत्पादन, हरे चारे हेतु उपयोगी उद्यानिकी फसलें जैसे-लोबिया आदि फसलो के उत्पादन तकनीक की जानकारी दी गई। बी.एस. परिहार, विषय वस्तु विशेषज्ञ, सस्य विज्ञान द्वारा साईलेज उत्पादन पर विस्तृत कार्ययोजना एवं विभिन्न ऋतुओं में लगाएं जाने वाले फसल जैसे-नेपियर, बहुवर्षीय ज्वार, मक्का, जई, सुडान घास आदि के विस्तृत उत्पादन तकनीक की जानकारी दी गई। प्रशिक्षण उपरांत सभी प्रशिक्षणार्थियों को कृषि विज्ञान केन्द्र अंतर्गत चारा उत्पादन इकाई, पशुधन उत्पादन इकाई का भ्रमण कराया गया।