
ब्रजेश गुप्ता
कवर्धा -: छत्तीसगढ़ की बहुप्रतीक्षित डोंगरगढ़–कटघोरा नई रेल लाइन परियोजना लंबे समय से ठप पड़ी है। परियोजना के अधर में लटके रहने से कबीरधाम और मुंगेली जैसे जिले आज भी सड़क परिवहन पर निर्भर हैं। औद्योगिक निवेशक नए प्रोजेक्ट लाने से बच रहे हैं और कोरबा–डोंगरगढ़ के बीच माल ढुलाई की लागत दोगुनी बनी हुई है। युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे और पर्यटन स्थलों तक कठिन पहुंच के चलते संभावित आय भी घट रही है।
देरी के कारण बढ़ा जन आक्रोश
भूमि अधिग्रहण विवाद, किसानों की आपत्तियां, मुआवजे पर असहमति, राजनीतिक बदलाव और विभागीय समन्वय की कमी—इन सभी वजहों ने परियोजना को रोक दिया है। अगस्त 2025 की रिपोर्ट के अनुसार परियोजना पर अब तक लगभग 800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन ग्राउंड पर एक इंच ट्रैक भी नहीं बिछा है। न स्टेशन बिल्डिंग दिखती है, न मशीनरी, कई जगहों पर तो भूमि अधिग्रहण भी शुरू नहीं हुआ।
विभागों में जिम्मेदारी को लेकर भ्रम
एसईसीआर बिलासपुर कंस्ट्रक्शन विभाग के सीपीआईओ आर.के. दिव्या ने बताया कि निर्माण कार्य की पूरी जिम्मेदारी रेलवे के पास है, और अब तक विभाग को कोई आधिकारिक निर्देश प्राप्त नहीं हुए।
उधर सीआरसीएल रायपुर के जनसूचना अधिकारी संजय सगदेव के मुताबिक, अब परियोजना निर्माण में सीआरसीएल की भूमिका नहीं रहेगी और राज्य सरकार पूरा जिम्मा रेलवे को सौंप रही है। अब प्रगति रिपोर्ट रेल मंत्रालय और रेलवे अधिकारी ही जारी करेंगे।
छह साल में सिर्फ कागजी प्रगति
पिछले छह वर्षों में सिर्फ प्रारंभिक सर्वे, डीपीआर, भूमि चिह्नांकन और बजट आवंटन (2024 में 300 करोड़) जैसी कागजी प्रक्रियाएँ पूरी हुईं। कई दौर की बैठकों के बावजूद वास्तविक कार्य शून्य है।
नतीजतन जनता में नाराज़गी बढ़ रही है और लोग शीघ्र समाधान की मांग कर रहे हैं।





